छात्र जीवन में राजनीति- निबंध लेखन

प्रस्तावना –समसामयिक विवादास्पद प्रश्नों में एक प्रश्न है – क्या छात्रों को राजनीति में भाग लेना चाहिए या उससे दूर रहना चाहिए? वस्तुतः यह बहस का विषय है। कुछ लोग तो यह मानते हैं कि छात्र को अपना सारा ध्यान अपने अध्ययन पर केन्द्रित करना चाहिए। यदि वह राजनीति में भाग लेगा तो निश्चित रूप से लक्ष्य भ्रष्ट हो जाएगा और इससे उसके भविष्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।


वर्ग उन लोगों का है जो यह मानते हैं कि छात्र इस देश का भावी नागरिक है. अतः उसे राजनीति में सक्रिय भाग लेकर देश के राजनीतिक क्षितिज पर अपना स्थान बना लेना चाहिए। जिस प्रकार वे अन्य विषयों की शिक्षा लेते हैं, उसी प्रकार राजनीति का क्रियात्मक पाठ पढ़कर वे देश के अच्छे राजनेता सिद्ध हो सकते हैं, अतः राजनीति छात्रों के लिए अस्पृश्य नहीं है। जमा


प्राचीन भारत में छात्र और राजनीति
– प्राचीन भारत में छात्रों को राजनीति का ज्ञान कराया जाता था, किन्तु वे सक्रिय राजनीति में भाग नहीं लेते थे। चाणक्य का अर्थशास्त्र, महात्मा विदुर की विदुर नीति तथा पंचतंत्र, हितोपदेश में राजनीति की विशद चर्चा है। राजपुरुषों के लिए ही नहीं अपितु सामान्य स्नातक को भी राजनीतिक शिक्षा दी जाती थी, जिससे वह एक नागरिक के रूप में अपने कर्तव्य का पालन कर सके और देश की समृद्धि में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वाह कर सके।

राजनीति में छात्र की भूमिका – आज भी कॉलेजों में राजनीतिशास्त्र एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है, अतः छात्र राजनीतिशास्त्र के सिद्धान्तों का अध्ययन-मनन तो करते ही हैं, किन्तु वे सक्रिय राजनीति में भाग लें, राजनीतिक दलों की सदस्यता ग्रहण करें, चुनावों में भाग लें, प्रत्याशियों के लिए प्रचार कार्य करें या किसी विशेष राजनीतिक दल से सम्बद्ध होकर उसकी नीतियों एवं सिद्धान्तों के प्रचार-प्रसार में योगदान करें – इस विषय पर चर्चा करनी है। विरोधियों के तर्क – जो लोग छात्रों के सक्रिय राजनीति में भाग लेने के विरोधी हैं उनका तर्क यही है कि छात्र का मस्तिष्क अपरिपक्व होता है, उसमें जोश अधिक होता है, होश कम। अतः राजनीतिज्ञ उन्हें अपना मोहरा बनाकर प्रयुक्त करते हैं, वे हड़ताल, बन्द, धरना आदि कार्यक्रमों को चलाकर सरकार के विरुद्ध छात्रों का मोर्चा खुलवा देते हैं और निर्दोष छात्रों को पुलिस की लाठी-गोली का शिकार बनना पड़ता है। राजनीतिक नेता अपना उल्लू सीधा करने के लिए तथा सत्ता केन्द्रित राजनीति पर दृष्टि रखते हुए छात्रों को समाज विरोधी कार्यों की ओर प्रेरित करते हैं। सरकारी सम्पत्ति का जो नुकसान छात्रों के द्वारा किया जाता है, वह अन्ततः देश को ही भुगतना पड़ता है, किन्तु उन स्वार्थी राजनीतिज्ञों को इसकी रंचमात्र भी चिन्ता नहीं रहती। _ आज प्रत्येक राजनीतिक दल की युवा शाखाएँ हैं जिनमें अधिकतर युवा छात्र ही सक्रिय सदस्य हैं। राजनीतिक दलों की प्रत्येक कॉलेज एवं विश्वविद्यालय में छात्र शाखाएँ हैं जिनमें बाकायदा पदाधिकारियों की नियुक्ति की जाती है। युवा कांग्रेस, युवा जनता पार्टी, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जैसे संगठनों ने छात्रों को राजनीति में ढकेल दिया है परिणामतः वे सत्ता की गन्दी राजनीति में उलझकर लक्ष्य भ्रष्ट हो गए हैं। विडम्बना तो यह है कि इस गन्दी राजनीति ने छात्रों को गुटों में बाँट दिया है। गुटबन्दी के शिकार होकर वे अध्ययन से दूर हो गए हैं और मारपीट, गुण्डागर्दी, हड़ताल जैसे समाज-विरोधी कार्यों में संलग्न हो गए हैं।

छात्र और सक्रिय राजनीति – सरकार ने मतदान की आयु 18 वर्ष कर दी है। कॉलेजों में पढ़ने वाले अधिकांश विद्यार्थी इस आयु सीमा को पार कर चुकने के कारण मतदान का अधिकार प्राप्त कर चुके हैं। सभी राजनीतिक दल यह चाहते हैं कि उन्हें अधिकाधिक छात्रों के वोट मिलें अतः वे छात्रों को लुभाने के लिए तरह-तरह के हथकण्डे अपनाते हैं। उन्हें धन, शक्ति, ऐशोआराम की वस्तुएँ मुहैया
करवाकर राजनीति में आने को विवश कर दिया जाता है। राजनीतिक नेताओं को ऐसे सक्रिय कार्यकर्ताओं की निरन्तर आवश्यकता रहती है जो चनाव के अवसर पर सक्रिय योगदान कर यह कार्य छात्रों से लिया जाता है। राजनीतिक नेता उन्हें संरक्षण प्रदान करके उनके अनैतिक कार्यों पर पर्दा डालने का कार्य करते हैं।


छात्रों की राजनीतिक सक्रियता के दष्परिणाम – विद्यालयों में प्रविष्ट इस गन्दी राजनीति ने छानों का भविष्य चौपट कर दिया है। अब वे अध्ययन-मनन में इतनी रुचि नहीं लेते जितनी राजनीति में लेते हा छात्र संघो के गठन ने इसमें और वन्दि कर दी है। बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में तो बाकायदा राजनीतिक दलों की ओर से प्रत्याशी खड़े किए जाते हैं और पार्टियाँ इन छात्र-संघों पर कब्जा करने के लिए लाखों रुपय चुनाव पर व्यय करती हैं। भारत की सभी राजनीतिक पार्टियाँ विश्वविद्यालयों में पनपनेवाली इस राजनीति में सक्रिय भाग ले रही हैं। अतः उनमें से किसी एक को या कुछ को दोषी नहीं ठहराया।

छात्र-संघ के गठन का मूल उद्देश्य छात्र कल्याण के कार्यों को करने के लिए एक मंच तथा एक सगठन प्रदान करना था, किन्तु अब वे अपने मूल उद्देश्य से भटक कर राजनीति के दलदल में गिर गए हैं। छात्र संघों का गठन छात्रों को देश की संसदीय प्रणाली का क्रियात्मक ज्ञान कराना तथा लोकतन्त्र की जड़ों को मजबूत करनेवाला एक मंच प्रदान करना था, किन्तु अब उनकी यह भूमिका गौण हो गई है।


क छात्रों को राजनीति से बचाने के उपाय – आज इस बात की आवश्यकता अनुभव की जा रही है कि शिक्षा क्षेत्र में बिगड़ते हुए वातावरण को सुधारने के लिए छात्रों को सक्रिय राजनीति से दूर रखने के लिए प्रयास किए जाएँ। छात्रों को दलगत राजनीति से दूर रहकर शान्तिपूर्ण एवं अहिंसात्मक आन्दोलनों में ही भाग लेना चाहिए। वे राजनीतिज्ञों के स्वार्थ का मोहरा बनने से बचें और तोड़-फोड़ के द्वारा राष्ट्रीय सम्पत्ति को हानि न पहुँचाएँ। वे विवेक से काम लें और सस्ती लोकप्रियता के चक्कर में न पड़कर अध्ययन में अपना ध्यान केन्द्रित करें। छात्र-जीवन में वे जो कुछ सीख सकेंगे वह जीवन भर काम आएगा, किन्तु यदि उन्होंने इस बहुमूल्य समय का उपयोग अपने व्यक्तित्व एवं चरित्र के विकास हेतु न किया तो उन्हें जीवन भर पछताना पड़ेगा।


उपसंहार – छात्र देश के भावी नागरिक हैं, अतः देश की समस्याओं से अछूते नहीं रह सकते। उनका दायित्व है कि वे भले-बुरे की पहचान कर अच्छाई की ओर अग्रसर हों और ऐसा तभी सम्भव है जब वे राजनीतिक दलों के कार्यक्रमों में सक्रिय भूमिका का निर्वाह न करें। छात्र यदि समय रहते सजग न हुए तो उनके अध्ययन में बाधा उत्पन्न होगी और वे अपने मूल लक्ष्य से भटक जाएंगे. इसमें कोई सन्देह नहीं है।

Leave a Reply

You cannot copy content of this page