समय बीतते देर नहीं लगती। एक समय ही है जो किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। घड़ी की टिकटिक होती तो बड़ी धीमी है, किन्तु सतत् गतिशील रहती है। अतः हमारा जीवन खाते-पीते, सोते-जागते बड़ी तेजी से बीत जाता है।
धरती पर मानव जीवन कब प्रारम्भ हुआ, इसका सही-सही उत्तर हमें ज्ञात नहीं। मानव सभ्यता के कुछ हजार वर्षों का इतिहास ही हमें ज्ञात है। प्रारम्भ में तो मानव सभ्यता और संस्कृति का विकास बड़ा धीमा रहा। उन्नीसवीं सदी के आरम्भ से ही विज्ञान के लाभ तेजी से दिखने लगे। बीसवीं सदी के
ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में हमने आशातीत उन्नति की है। हमारी बीसवीं सदी की उन्नति जादू जैसी है। हमने जीवन और जगत् के प्रत्येक क्षेत्र में नया कीर्तिमान बनाया जो पहले कभी हमारी कल्पना में भी नहीं था। चाँद पर कदम रखने के बाद हमने मंगल की ओर कदम बढ़ाए हैं।
आज तक हमने जो प्राप्ति की है, इसके आधार पर विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि इक्कीसवीं सदी का विश्व आज की तलना में कई गना समन्द और विकसित होगा। जैसे-यदि आज हमारे पूर्वज जीवित होकर आ जाएँ तो उन्हें इस दनिया को देखकर घोर आश्चर्य होगा। उसी प्रकार इक्कीसवीं सदी के अन्त में विश्व को देखते समय हमारी आँखें भी फटी-की-फटी रह जाएंगी।
इक्कीसवीं सदी के अन्त तक के विश्व का रूप कैसा होगा, इसका सही-सही उत्तर दे पाना तो आसान नहीं, फिर भी हम सहज अनुमान लगा सकते हैं कि जीवन के हर क्षेत्र में टेक्नोलॉजी का बोलबाला होगा। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आश्चर्यजनक परिवर्तन होंगे। ई-मेल, वेबसाइट, और ईकामर्स के युग में कागज, पुस्तक और पाठक के सम्बन्धों का रूप बदलेगा। ‘मनी ऑर्डर’ तो निश्चय ही संग्रहालय में ही देखने को मिलेगा। ‘दुकानदारी’ का रूप भी बदलेगा। दुकान के काउंटर पर ग्राहकों की भीड़ नहीं होगी, बल्कि ग्राहकों के लैपटॉप पर विक्रेता कम्पनियों के ई-मेल की कतार लगी होगी और ग्राहक मनमर्जी से वेबसाइट विजिट करके आर्डर मेल करेगा। घर और दफ्तर के बीच की दूरी ही नहीं, अन्तर भी समाप्त हो जाएगा। घर के किसी कोने में विराजमान लैपटॉप दुनियाभर का रिकॉर्ड ही नहीं सम्भालेगा बल्कि सन्देश भी पहुँचाएगा, सन्देश लेगा, व्यापारिक लेन-देन और अपने मालिक की दिनचर्या निश्चित करेगा। फोन तो पहले ही टेबल से उठकर जेबों में चले आए हैं और अब वे शायद चश्मों, अंगूठियों या ईयररिंग में चले आएँगे। सब कुछ मोबाइल होगा। बस आदमी की मोबेलिटी (चलने-फिरने की क्षमता) कम हो चकी होगी।
चिकित्सा के क्षेत्र में भी आशातीत परिवर्तन होंगे। पीड़ादायक आपरेशनों से तो छुटकारा ही मिल जाएगा। ‘एड्स’ जैसे रोग का इलाज भी ढूँढ़ लिया जाएगा। सम्भवतः इसका प्रतिरोधक टीका ही तैयार हो जाए, लेकिन इसके बावजूद कुछ और बीमारियाँ सामने आएंगी जो निश्चित तौर पर मानवजीवन में यांत्रिकी के अत्यधिक उपयोग के कारण उत्पन्न होंगी। कम्प्यूटर के सामने काम करने वाले, हवाई जहाज की यात्राएँ करने वाले लोग तो अभी से ही कुछ नई-नई बीमारियों के लक्षण दर्शा रहे हैं। आगे चलकर इन्हीं बीमारियों का रूप बदलेगा। ‘तनाव के कारण भी रोगों में वृद्धि होगी।
हमारे जीवन में यदि सुख-समृद्धि बढ़ेगी तो प्रतियोगिता भी कई गुना बढ़ जाएगी। धनी-गरीब के बीच की खाई भी बढ़ जाएगी। विश्व के राष्ट्रों के बीच कैसे सम्बन्ध होंगे, बताना मश्किल है। यदि विवेक और संयम से विश्व की महान शक्तियों ने काम नहीं लिया तो सम्भव है हमारा अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाए। नई धरती की खोज एक जरूरत बन जाएगी। इस धरती से बाहर कहीं और बसना मजबूरी हो जाएगी। अतः यातायात धरती की सीमा से निकलेगा। जहाँ जीवन सम्भव हो, वहाँ बसने के मानवीय-प्रयासों में तेजी तो आएगी ही सम्भवतः सफलता भी मिल ही जाए। चाँद पर पानी होने के प्रमाण हमें मिल गए हैं। सम्भवतः इक्कीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक वहाँ मानव बस्ती बस चुका होगी। मंगल पर हमारा रोबोट जा चुका है, निश्चय ही मानव मंगल की धरती पर कदम भी रख चुका होगा।
डक्कीसवीं सदी में वक्त के साथ चलने और एक विकसित राष्ट्र का दर्जा प्राप्त करने के लिए हम भारतीयों को राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में कई प्रकार की तैयारियाँ करनी हैं। हर्ष का विषय है कि हमारी सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी की उपयोगिता को स्वीकार कर उसके लिए नई शिक्षा नीति बनाई है। इस क्षेत्र में नई जानकारी आयातित नहीं की है, बल्कि अपने देश में भी उसके विकास के लिए कारगर कदम उठाए हैं। कल-कारखानों को आधुनिक बनाकर उत्पादन के साथ-साथ गुणवत्ता बढ़ाने के लिए भी प्रयास प्रारम्भ हो गए हैं।
हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने देश को तेजी से प्रगति के मार्ग पर अग्रसर करने के उद्देश्य से 21वीं सदी में भारत को गौरवपूर्ण स्थान दिलाने का आह्वान किया था। उसे यथाथ बनाना हम सबका प्रथम कर्तव्य है। हमारा आत्मविश्वास बढ़ा है और स्वाभिमान जाग्रत हो चुका है। इसमें कोई शंका नहीं है कि 21 वीं सदी भारत की है। बहुत शीघ्र भारत विश्व के श्रेष्ठ राष्ट्रों में से एक ही नहीं बल्कि सर्वोच्च होगा।