मीडिया के बढ़ते कदम

लोकतंत्र का अर्थ है – लोक ही अपने लिए नियम-कानून की व्यवस्था निर्मित करे। यह तभी संभव है, जबकि किसी लोकतंत्र का ‘लोक’ जाग्रत हो, जिम्मेदार हो। उसकी अपनी इच्छा हो, अपने लक्ष्य और आदर्श हों। वह किसी अन्य के इशारों पर ढकेले जाने वाला गुलाम न हो। वह ऊँटगाड़ी में जाता हुआ ऊँट न हो, बल्कि उस ऊंटगाड़ी को चलाने वाला चालक हो।

किसी देश का लोक जागरूक हो, इसके लिए उसका चिंतनशील, संवेदनशील, अनुभवी, शक्तिशाली और क्रियाशील होना आवश्यक है। ये सभी गुण तब आते हैं, जब लोग समाज के सामने आने वाली समस्याओं पर सोचते हैं, विचारते हैं और नए-नए उपाय खोजते हैं। यदि किसी लोकतंत्र के लोग अपनी-अपनी घरेलू या व्यावसायिक समस्याओं से अलग कुछ सोच ही न पाते हों तो वहाँ लोकतंत्र कभी सफल नहीं हो सकता। यदि भारतीय जन भारत में फैले आतंकवाद पर, पश्चिमीकरण पर, अंग्रेजी संस्कारों पर, दूरदर्शन के कार्यक्रमों पर, नए फैशन पर, नई बीमारियों पर या नई जीवनशैलियों पर कोई मत ही नहीं रखते तो वे अपना तंत्र कैसे स्थापित करेंगे? भारत का समाज आज लिंग-अनुपात, समलैंगिकता, अविवाहित मित्र-जीवन, डेटिंग, काम-स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर नई समस्याएँ झेल रहा है। इन पर लोकमत जानने और बनाने का काम मीडिया के हाथों में है।

प्रश्न यह है कि मीडिया यानि दूरदर्शन, नई घटनाओं को हमारे सामने प्रस्तुत कर रहे हैं। परन्त कम समाचार पत्र और शैनल जानबढ़ाकर सनसनी फैलाने वाली सूचनाओं द्वारा जनता कोलबा, आतंकित या भयभीत कर रहे हैं। वे श्लीलता अश्लीलता तथा गोपनीयता की सभी सीमाओं को लाँघ रहे हैं। इस पर संयम रखना स्वयं मीडियाकर्मियों का दायित्व है। मुम्बई-काण्ड में जिस तरह मीडिया कर्मियों ने आतंकवाद से निपटने की सचिन जानकारी टी.वी. पर दी, उससे आतंकवादियों को ही लाभ मिला। मीडिया को ऐसी गैर-जिम्मेदारी से बचना चाहिए।

मीडिया की सर्वाधिक प्रभावी भूमिका विभिन्न चर्चाओं, वाद-विवादों, साक्षात्कारों या सर्वेक्षणों के माध्यम से पूरी होती है। जब आतंकवाद, वेलेन्टाइन डे, डेटिंग, शष्टाचार, परमाणु बिजली, योग जसे ज्वलंत मुद्दों पर जनता और विशेषज्ञ अपनी राय देते हैं तो जनता का भी ‘मत’ जाग्रत होता है। यही लोक-इच्छा लोकतंत्र को मजबूत करती है।

मीडिया में विभिन्न राजनीतिक झुकावों वाले चैनल भी हैं और निष्पक्ष चैनल भी हैं। पत्र-पत्रिकाओं की भी यही स्थिति है। आज मीडिया की पहुँच जन-जन तक हो गई है। यदि मीडिया भारत के सम्मुख आने वाली राजनैतिक चुनौतियों को निष्पक्ष रूप से देश की जनता के सम्मुख रखे और उन्हें हल करने वाले नेताओं की शक्ति का सही विवरण भी सामने रखे तो यह नई सरकारों के निर्माण में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है।
भारत में बढ़ता लिंगानुपात, सांप्रदायिक वैमनस्य, जातिवाद, राजनीति का अपराधीकरण, राजनीतिक उदासीनता, भ्रष्टाचार आदि ज्वलंत समस्याएँ हैं। मीडिया को चाहिए कि वह क्रिकेट और फिल्मी जगत की तितलियों को छोड़कर उन समस्याओं को सुर्खियों में रखे जो सबल जनमत का निर्माण कर सकें।

Leave a Reply

You cannot copy content of this page