अर्थ- व्यायाम शब्द का संधिविच्छेद है – वि + आयाम। आयाम का अर्थ है – विस्तार। अर्थात (शरीर को) विस्तार देने की विशेष क्रियाएँ व्यायाम कहलाती हैं। व्यायाम शब्द के भीतर ही उसके लाभों की व्याख्या छिपी हुई है।
व्यायाम और खेल – व्यायाम सोद्देश्य क्रिया है। अपने शरीर को सुगठित करने के लिए, अपने नाड़ी-तंत्र को मजबूत बनाने के लिए तथा भीतरी शक्तियों को तेज करने के लिए जो भी क्रियाएँ की जाती हैं, वे निश्चित रूप से शरीर को लाभ पहुंचाती हैं। कुछ लोगों का कहना है कि सभी प्रकार के खेल व्यायाम के अन्तर्गत आ जाते हैं। दूसरी ओर, कुछ विद्वान खेलों, पहलवानी आदि घक्का देने वाली क्रियाओं को छोड़कर शेष क्रियाओं को व्यायाम कहते हैं।
। शारीरिक लाभ- व्यायाम करने से मनुष्य का शरीर सुगठित, स्वस्थ, सुन्दर तथा सडौल बनता है। हजारों की भीड़ में से कसरती बदन वाला व्यक्ति सहज ही पहचान लिया जाता है। कसरती व्यक्ति का शरीर-तंत्र स्वस्थ बना रहता है। उसकी पाचन-शक्ति तेज बनी रहती है। रक्त का प्रवाह तीव्र होता है। शरीर के मल उचित निकास पाते हैं। परिणामस्वरूप देह में शुद्धता आती है। भूख बढ़ती है। खाया -पीया शीघ्रता से पचता है। रक्त – मांस उचित मात्रा में बनते हैं। शरीर स्वस्थ और चुस्त बनता है। आलस्य दूर भागता है। दिन भर स्फूर्ति और उत्साह बना रहता है। मांसपेशियाँ लचीली हो जाती हैं, जिससे उनकी क्रिया-शक्ति बढ़ जाती है। छाती व पुट्ठों के विकास से शरीर में अनोखा आकर्षण आ जाता है। व्यायाम से शरीर में वीर्य का कोष भर जाता है जिससे तन दमक उठता है। मस्तक पर तेज छा जाता है।
मानसिक लाभ – व्यायाम का प्रभाव मन पर भी पड़ता है। जैसा तन, वैसा मन । शरीर जर्जर और बीमार हो तो मन भी शिथिल हो जाता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन और आत्मा का निवास होता है। व्यायाम के पश्चात् मन में तेज आ जाता है। उत्साह और उमंग से व्यक्ति जिस भी काम को हाथ लगाता है, वह पूरा हो जाता है। मन में संघर्ष करने की इच्छा बलवती होती है। निराशा दूर भागती है। आशा का संचार होता है।
अनुशासन – व्यायाम से अनुशासन का सीधा संबंध है। कसरती व्यक्ति के मन में संयम का स्वयमेव संचार होने लगता है। स्वयं के शरीर पर संतुलन, मन पर नियंत्रण आदि गुण व्यायाम करने से स्वयं आते चले जाते हैं। अतः प्रत्येक व्यक्ति को व्यायाम करना चाहिए।