अलगाववाद तथा साम्प्रदायिकता राष्ट्र के लिए घातक है

अलगाववाद और साम्प्रदायिकता दोनों अलग-अलग तत्व हैं लेकिन राष्ट्र की प्रगति, एकता और अखण्डता में दोनों ही बाधक हैं। देश में विघटन और अशांतिजनक कई तत्व सिर उठा रहे हैं जो देश को विखण्डित कर देना चाहते हैं। अतः उन अशांति- कारक तत्वों से एकजुट होकर निपटना ही देश क प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। हमारे देश में राष्ट्र के नवनिर्माण तथा उसे सुदृढ़ बनाने की प्रकिया प्राचीन काल से ही प्रारम्भ हो गई थीं। जहाँ त्रेता युग के नायक श्रीरामचन्द्र जी ने राजसूय यज्ञ सारे देश को एकता के सत्र में बाँधने के उद्देश्य से किया था, वहीं द्वापर में युधिष्ठिर ने भी सभी को एकता
सूत्र में बाँधने के लिए राजसूय यज्ञ किया था। उन सभी का मुख्य उद्देश्य देश को विघटित कर का अलगाववादी शक्तियों को नष्ट करना था। हमारे देश में प्रारम्भ से ही सामाजिक और राजनैतिक एकता थी। विभिन्न युगों में प्रतापी राजाओं ने राजनीतिक एकता के सूत्र में राष्ट्र को बाँधने का प्रयास किया था जिसमें उन्हें अल्पकालीन सफलता भी मिली थी। आधुनिक युग में अंग्रेजों ने भी विशाल सामाज्य का निर्माण किया था, लेकिन उन्होने जो हमारे देश का आर्थिक तथा राजनीतिक शोषण किया था उसी से हमारे देश के नौजवानों में पुनः एकता का सबक मिला। किन्तु आन्दोलनों के दौरान मुस्लिम तत्व साम्प्रदायिक तत्व के रूप में उभरा। एक तरफ जहाँ हमारे देश ने अंग्रेजी -शोषण से मुक्ति पाया वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान एक साम्प्रदायिक तत्व के रूप में अंकुरित हुआ।
स्वाधीनता के पश्चात् राष्ट्र के विकास और नवनिर्माण का कार्य जोरों से प्रारम्भ हुआ। देश के छोटे राज्यों को समाप्त करके राष्ट्र का पूर्ण राजनीतिक एकीकरण सम्पन्न किया गया। संविधान के निर्माण के समय सभी वर्गों के हितों को ध्यान में रखा गया। हिन्दी को राष्ट्र भाषा घोषित कर राष्ट्रीय एकता का परिचय दिया गया। हमारे देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित किया गया ताकि धर्मों का सवाल न खड़ा हो सके। किन्तु भाषाओं की समस्या कुछ वर्षों के भीतर ही प्रारम्भ हो गयी जिसको सफलता से हल किया गया।

स्वाधीनता के पचास वर्षों के पश्चात् भी हमारा देश विघटन के कगार पर है। देश में साम्प्रदायिकता, जातिवाद, विदेशियों के षड़यंत्र एवं राष्ट्रभाषा को लेकर विवाद- इन सभी विघटनकारी तत्वों ने राष्ट्रीय एकता में भयंकर बाधा पैदा कर दिया है। सर्वप्रथम पृथकतावादी आन्दोलन नागालैण्ड में कई वर्षों तक चला तो सैन्यशक्ति और राजनैतिक सूझबूझ से पुनः शांति स्थापित की जा सकी। मिजोरम में भी पृथकतावादी आन्दोलन कई वर्षों से सक्रिय था किन्त केन्द्रीय सरकार ने धैर्यपर्वक राज्य के नेता लालडेंगा से भारतीय संविधान के अंतर्गत समस्या को सुलझाया। इसी प्रकार मणिपुर में भी राष्ट्रविरोधी आन्दोलन चला। जहाँ एक तरफ बिहार में एक नया राज्य झारखण्ड बनाया गया वहीं दूसरी तरफ उत्तरी बंगाल में गोरखा राज्य बनाने की बात उठाई गयी। देश की पश्चिमी सीमा पर खालिस्तान की माँग की गयी जिसमें विदेशी शक्तियाँ पूर्णरूप से सक्रिय हैं। कश्मीर में भी स्वायत्तता की माँग की गयी। इस समस्या को दूर करने का एकमात्र उपाय विदेशी शक्तियों पर कड़े प्रतिबन्ध लगाना चाहिए जो धर्म की आड़ में देश को विखण्डित करने पर तुली हुई हैं। पूर्वांचल में आर्थिक पिछड़ापन विदेशियों को देशद्रोह के मार्ग को प्रशस्त करने का अवसर देता है। सरकार ने, देश की एकता के लिए जो कदम उठाये हैं वे राजनीतिक दलों और घूसखोरों के चलते पूर्ण सफल नहीं हो सके हैं।

दूसरा अलगाववादी तत्व साम्प्रदायिकता है जो देश के तमाम नागरिकों में धार्मिक दंगों को जन्म देता है। आये दिन हिन्दू -मुस्लिम दंगे होते रहते हैं। जहाँ हमारे देश के नेता हिन्दू-मुस्लिम में भेद
त करते हैं वहीं इस्लामसमर्थक सर्वत्र इस्लाम के ही प्रचार को महत्व देते हैं। वे सब को मुसलमान बनाना अपना प्रमुख कर्तव्य समझते हैं। धार्मिक एकता की बात प्रारम्भ होते ही मुसलमान दंगा-फसाद शुरू कर देते हैं। अब तो खाड़ी देशों से हमारे देश में धार्मिक भिन्नता तथा आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए करोड़ों रूपये आ रहे हैं। गरीब हिन्दुओं को प्रलोभन देकर कट्टर मुस्लिम बनाया जा रहा है।

अकाली दल और भिण्डरावाले की आतंकवादी तथा साम्प्रदायिक माँगों ने पंजाब में जो नृशंस ताण्डव किया था, उससे सारा देश परेशान था। वहाँ की स्थिति बड़ी ही दयनीय और कारुणिक हो गई थी। किसी तरह तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअन्तसिंह और पुलिस अधिकारी कुँवरपालसिंह गिल के प्रयासों से इस आतंकवाद को दबाया गया। कश्मीर में भी आतंकवाद ने तहलका मचा रखा है। हमारे देश में सभी धर्मों के शिक्षण संस्थान हैं, परन्तु हिन्दू धर्म-शिक्षण का कोई ऐसा केन्द्र नहीं है। हमारे देश में राजनैतिक तालमेल नहीं होने से ही कई राजनैतिक पार्टियों का गठन हो गया है। जातिपाति ° का भेद जहाँ खात्मा पर था, वहीं कई नेताओं ने उसकी आग को भड़काने में घी का काम किया है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि अलगाववादी और साम्प्रदायिक शक्तियाँ राष्ट्र के लिए कैंसर हैं। इनसे हमें सावधान रहना होगा तथा आपसी तालमेल और सूझबूझ से इन विकट समस्याओं से जूझना होगा ताकि हमारा देश समृद्ध और खुशहाल हो। यही हमारा परम ध्येय होना चाहिए।

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