जीवन में खेल-कूद का महत्व मा० प0 – 2019

भूमिका – स्वामी विवेकानन्दले अपने देश के जातकों को संबोधित करते हुए कहा था-‘सर्वप्रथम हमारे नवयुवकों को बलवान बजाना चाहिए।धर्म पीछे आ जाएगा।’ स्वामी विवेकानन्द के इस कथन से स्पार है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास संभव है और शरीर को स्वस्थ तथा हष्ट-पुष्ट बनाने के लिए खेल अनिवार्य है।


खेलों से लाभ – पाश्चात्य विद्वान पी. साइरन ने कहा है. अच्छा स्वास्थ्य एवं अच्छी समझ जीवन के दो सर्वोत्तम वरदान है। इन दोनों की प्राप्ति के लिए जीवन में खिलाड़ी की भावना से खेल खेलना आवश्यक है। खेलने से शरीर पर होता है, मांसपेशियाँ उभरती हैं, भूख बढ़ती है, शरीर शुद्ध होता है तथा आलस्य दूर होता है। न खेलने की स्थिति में शरीर दुर्बल, रोगी तथा आलसी हो जाता है। इन सबका कुप्रभाव मन पर पड़ता है जिससे मनुष्य की सहा-बड़ा समाप्त हो जाती है। मनुष्य निस्तेज, उत्साहहीन एवं लक्ष्यहीन हो जाता है। शरीर तथा मन से दुर्बल एवं रोगी व्यक्ति जीवन के सच्चे सुख और आनन्दको प्राप्त नहीं कर सकता। बीमार होने की स्थिति में मनुष्य अपना तो अहित करता ही है, समाज का भी अहित करता है। गाँधी जी बीमार होना पाप का चिह्न मानते थे।


खेल विजयी बनाते हैं – खेल खेलने से मनुष्य में संघर्ष करने की आदत बनती है। उसकी जुझारू शक्ति उसे नव जीवन प्रदान करती है। उसे हार जीत को सहर्ष झेलने की आदत पड़ती है। खेलों से मनुष्य का मन एकाग्रचित्त होता है। खेलते समय खिलाड़ी स्वयं को भूल जाता है। खेल हमें अनुशासन, संगठन, पारस्परिक सहयोग, आज्ञाकारिता, साहस, विश्वास और औचित्य की शिक्षा प्रदान करते हैं।


मनोरंजन – खेल हमारा भरपूर मनोरंजन करते हैं। खिलाड़ी हो अथवा खेल – प्रेमी, दोनों को खेल के मैदान में एक अपूर्व आनन्द मिलता है। मनोरंजन जीवन को सुमधुर बनाने के लिए आवश्यक है। इस दृष्टि से भी जीवन में खेलों का अपना महत्त्व है।

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